
Ghantaghar Mirzapur – मिर्ज़ापुर का ऐतिहासिक घंटाघर केवल मिर्ज़ापुर का ही नही अपितु पूरे एशिया का सबसे अद्भुत घंटाघर में से एक है । देशी गुलाबी पत्थरो पे महीन नक्काशियो से बना यह घंटाघर रोमन स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है।इस कलात्मक कृति को बनाने में मिर्ज़ापुर के कारीगरों ने अपने कुशल कारीगरी का अद्भुत परिचय दिया है, ऐसी दुर्लभ नक्काशी आपको शायद ही किसी घंटाघर मे देखने को मिले, जो वाकई काबिले तारीफ है ।
घंटाघर को मिर्जापुर की धड़कन बोला जाता है
घंटाघर – मिर्ज़ापुर का निर्माण कब हुआ ?
मिर्ज़ापुर के इस ऐतिहासिक घंटाघर का निर्माण 19वी शताब्दी के अंत में लगभग 1886 में होना प्रारम्भ हुआ जो 31 मई 1891 में बनकर तैयार हुआ, घण्टाघर का निर्माण अत्यधिक अलंकारिक उच्चकोटि का भारत की समृद्धि शिल्प की याद दिलाती है। यह भारत का सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक घण्टाघर होने का गौरव प्राप्त किया है । उस समय इसके निर्माण मे लगभग 18000/- रुपए का खर्च आया था जिसका वहन स्थानीय व्यापारियों व अधिकारियो द्वारा किया गया था एवं काशी नरेश, कन्तित-विजयपुर नरेश, महारानी वेदशरण कुँवरि (अगोरी-बड़हर) का सर्वाधिक धन व्यय हुआ है। इसका उल्लेख घण्टाघर में लगे पाषाण-पट्ट पर हुआ है।

मिर्ज़ापुर के घंटाघर का घड़ी

घंटाघर के घड़ी का निर्माण लंदन के नियर्स स्टेट बैंक कंपनी द्वारा 1866 में किया गया था खास बात यह है की घडी गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा चलटी हैं और इसमे कोई भी स्प्रिग आदि नहीं लगी है. घड़ी की मशीन छोटी है किंतु पेंडुलम लगभग 20 फ़ीट का है यह काफी जटिल कारीगरी से बनाया गया है, और इस घडी का भार लगभग एक क्विंटल है । इसे तत्कालीन सदस्य मोहन लाल द्वारा प्रदान किया गया था …
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मिर्ज़ापुर की धड़कन घंटाघर
घंटाघर को मिर्जापुर की धड़कन बोला जाता है, क्योंकि जब ये बजती थी तो इसकी ध्वनि व कम्पन पूरे नगर भर में सुनाई पड़ती थी और लोगो को समय का पता चल जाता था । नगर के मध्य में स्थित इस घंटाघर की ऊँचाई लगभग 100 फ़ीट है ।
वर्तमान में मिर्ज़ापुर की यह ऐतिहासिक घड़ी रुक गयी है और घंटाघर मात्र एक ऐतिहासिक धरोहर बन कर रह गया है !!
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